कलम की काली स्याही से...
Saturday, April 24, 2010
तपती धरती... तपता मन
तप रहा है सूरज
तप रही है धरती
धरती के तपने से
तप रहे हैं लोग
अब तो समाज के तपने से
तपने लगा है मेरा मन !
2 comments:
Unknown
April 26, 2010 at 7:07 AM
वाह
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Unknown
September 12, 2010 at 6:58 AM
आपने बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है. आप लिखते रहें, अच्छा लगता है
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वाह
ReplyDeleteआपने बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है. आप लिखते रहें, अच्छा लगता है
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