Monday, April 21, 2014

मेरा मन



ये मन भी बड़ा अजीब है
कभी नमकीन, कभी मीठी चीज है

कभी सूरज सा तेज, कभी चांद सा शीतल
आंसमा के आंचल में हवा के बीच है

थोड़ी ऊंचाई, थोड़ी गहराई
कभी हिमालय, कभी समुंदर के बीच है

तारों के बारात में
मछलियों के झुंड में
किस्से-कहानी, ख्यालों के बीच है

प्रकृति की कृति, बागों के फूलों में
भ्रमर राग के बीच है

ये मन भी बड़ा अजीब है
दीपक-पतंगे के प्रेम के बीच है

Thursday, April 10, 2014

पतंग...



पतंग को देखकर
याद आता है बचपन
चरखी, धागा और
मांझे की वो बात
कभी आंगन, कभी मैदान
मुंडेर और छतों पर
उड़ाते थे लाल,पीली,नीली पतंग
दोस्तों के साथ  
दांव-पेंच, जीत-हार
आसमान में लड़ती थी पतंगें
कभी जीतने की खुशी
कभी हार का गम
याद आता है वो बचपन
बचपन जो बीत गया
फिर नहीं लौटेगा
आज भी याद आता है