पतंग को देखकर
याद आता है बचपन
चरखी, धागा और
मांझे की वो बात
कभी आंगन, कभी मैदान
मुंडेर और छतों पर
उड़ाते थे लाल,पीली,नीली
पतंग
दोस्तों के साथ
दांव-पेंच, जीत-हार
आसमान में लड़ती थी
पतंगें
कभी जीतने की खुशी
कभी हार का गम
याद आता है वो बचपन
बचपन जो बीत गया
फिर नहीं लौटेगा
आज भी याद आता है
आपकी इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद मुझे भी कुछ याद आ गया.....
ReplyDeleteभरी दोपहर में पोखर में नहाना...
मछरदानी से वो मछली पकड़ना...
दोस्तों के साथ बोरसी में बुट्टा पकाना...
भरी गर्मी में नमक और मिर्च के साथ वो कच्चा आम खाना...
लौटा दो वो बचपन की मेरी यादे....
भाक कट्टे................................
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