Monday, April 21, 2014

मेरा मन



ये मन भी बड़ा अजीब है
कभी नमकीन, कभी मीठी चीज है

कभी सूरज सा तेज, कभी चांद सा शीतल
आंसमा के आंचल में हवा के बीच है

थोड़ी ऊंचाई, थोड़ी गहराई
कभी हिमालय, कभी समुंदर के बीच है

तारों के बारात में
मछलियों के झुंड में
किस्से-कहानी, ख्यालों के बीच है

प्रकृति की कृति, बागों के फूलों में
भ्रमर राग के बीच है

ये मन भी बड़ा अजीब है
दीपक-पतंगे के प्रेम के बीच है

3 comments:

  1. आपके मन की इस साफगोई का कोई भी प्रशंसक हो सकता है...जिसमें अब आप मेरा नाम भी शामिल कर लें.......भले ही आपका ये मन थोड़ा अजीब है...कभी नमकीन तो कभी कोई मीठी चीज है...लेकिन सच है कि आपका मन एक नजीब है...

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  2. वाह वाह धीरज

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