Saturday, May 17, 2014

आसमां के पार



चलो चलें
चलना ही नियति है
जीवन पर्यंत

चलो चलें
जहां मन को मिले शांति
और तन हो जाए तृप्त

चलो चलें
आत्मा से परे
परब्रह्मांड के पार
नहीं है वहां कोई शापित

चलो चलें
जहां नहीं विचरते मनुष्य
शायद रहते हैं देवता

चलो चलें
इस जंगल से दूर
व्योम की गहराईयों में
जहां मिले हवा की शीतलता

चलो चलें
गिरिराज की कंदराओं में
होने निर्विकार
तन से विरक्त
और मन से आशक्त

  

1 comment:

  1. लगता है सर आपको इस सुंदर संसार से विरक्ति हो गई है.... वैसे भी कहा गया है कि जो मनुष्य रुपी संसार में नहीं रहता है या तो वो देवता है या फिर दानव..... वैसे आप भले मानुस है.... आपके दर्द का एक ही इलाज है.... प्यार....प्यार...प्यार... इस लाइलाज बीमारी की एक ही दवा है....

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