Sunday, January 24, 2010

नीयति से नाता!

हार नहीं मानूंगा
तकरार करके रहूँगा
लडूंगा...
भिड़ूगा...
प्रतिकार करूँगा
अधिकारों के लिए
वार भी करूँगा
और...
घुटन भरी लम्बी जिंदगी के बदले
एक दिन की सम्मानित जिंदगी जीऊंगा
पर...
वर्तमान परिस्थिति को नीयति मानकर
चुप नहीं बैठूँगा
हार नहीं मानूंगा

Wednesday, January 13, 2010

इस शहर की शाम से परेशां सा हूं...

इस शहर की गलियों से अंजान सा हूँ
गली में लगी दुकानों को देख हैरान सा हूँ
आस पास भीड़ तो दिखती है मगर
इस भीड़ में गुमनाम सा हूँ
इस शहर की शाम से परेशां सा हूँ...

सड़कों पर मोटरगाड़ियों को देखता हूँ मगर
इन गाड़ियों में बैठे लोगों से अंजान सा हूँ
नज़रें ढूंढती है कि कोई अपना सा मिले
पर अपनों की खोज में हैरान सा हूँ
इस शहर की शाम से परेशां सा हूँ...

अब भूख लगी तो है
पर सोचता हूँ, जाऊ किधर
पांच सितारा होटल देख हैरान सा हूँ
शायद वहां पेट की भूख मिटती नहीं
इसलिए रोटी की खोज में थका सा हूँ
इस शहर की शाम से परेशां सा हूँ...

शाम गहरी हो रही है
सर छिपाने के लिए मैं जाऊ किधर
इस शहर में ऊँची इमारतें तो हैं
पर इन इमारतों में अपना मकान तो मिले
एक आशियाने की खोज में थका सा हूँ
आबोदाने की चाह में डरा सा हूँ
इस शहर की शाम से परेशां सा हूँ...

Tuesday, January 5, 2010

कलम की काली स्याही से ...

कलम की काली स्याही से
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ
पर न जाने क्यों मुझे
और मेरी कलम की काली स्याही को
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखता है

अपनी माँ की छाती से लिपटे
उस मासूम का चेहरा दिखता है
जिसकी माँ, उसके दूध के इंतजाम के लिए
लोगों के सामने हाथ पसारे खड़ी है

मुझे उस रिक्शे वाले का
हताश चेहरा दिखता है
जो अपना खून जलने की एवज में
चंद सिक्कों की चाहत रखता है

उस बेबस किसान का
चेहरा याद आता है
जो अपने सर पर हाथ रख
आसमान से दो बूँद की आस रखता है

उस मजदूर की हूक सुनाई पड़ती है
जो ठण्ड की रात में
अलाव के पास
फूटपाथ पर ही गमछा ओढ़े
और पेट में अपने घुटने साटाये सोया है


मुझे क्यों नहीं
बसंत की ठंडी बयार की रूमानियत
हसीं वादियों की खूबसूरती
फूलों पर मंडराते, भ्रमरों की गूँज
और आम के बगीचों में कोयल की
कूक सुनायी देती है

क्यों मुझे और मेरी कलम की
काली स्याही को...
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखाई देता है?

अब स्याह सच तो बहुत है
कितनों को गिनाऊ मैं
अगर काली स्याही से लिखता ही गया
तो एक दिन खुद को ही भूल जाऊंगा

मुझे अपने में आने दो
और खुद से ही सवाल करने दो
कि क्यों मुझे और मेरी कलम को
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखता है ।