कलम की काली स्याही से
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ
पर न जाने क्यों मुझे
और मेरी कलम की काली स्याही को
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखता है
अपनी माँ की छाती से लिपटे
उस मासूम का चेहरा दिखता है
जिसकी माँ, उसके दूध के इंतजाम के लिए
लोगों के सामने हाथ पसारे खड़ी है
मुझे उस रिक्शे वाले का
हताश चेहरा दिखता है
जो अपना खून जलने की एवज में
चंद सिक्कों की चाहत रखता है
उस बेबस किसान का
चेहरा याद आता है
जो अपने सर पर हाथ रख
आसमान से दो बूँद की आस रखता है
उस मजदूर की हूक सुनाई पड़ती है
जो ठण्ड की रात में
अलाव के पास
फूटपाथ पर ही गमछा ओढ़े
और पेट में अपने घुटने साटाये सोया है
मुझे क्यों नहीं
बसंत की ठंडी बयार की रूमानियत
हसीं वादियों की खूबसूरती
फूलों पर मंडराते, भ्रमरों की गूँज
और आम के बगीचों में कोयल की
कूक सुनायी देती है
क्यों मुझे और मेरी कलम की
काली स्याही को...
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखाई देता है?
अब स्याह सच तो बहुत है
कितनों को गिनाऊ मैं
अगर काली स्याही से लिखता ही गया
तो एक दिन खुद को ही भूल जाऊंगा
मुझे अपने में आने दो
और खुद से ही सवाल करने दो
कि क्यों मुझे और मेरी कलम को
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखता है ।
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ
पर न जाने क्यों मुझे
और मेरी कलम की काली स्याही को
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखता है
अपनी माँ की छाती से लिपटे
उस मासूम का चेहरा दिखता है
जिसकी माँ, उसके दूध के इंतजाम के लिए
लोगों के सामने हाथ पसारे खड़ी है
मुझे उस रिक्शे वाले का
हताश चेहरा दिखता है
जो अपना खून जलने की एवज में
चंद सिक्कों की चाहत रखता है
उस बेबस किसान का
चेहरा याद आता है
जो अपने सर पर हाथ रख
आसमान से दो बूँद की आस रखता है
उस मजदूर की हूक सुनाई पड़ती है
जो ठण्ड की रात में
अलाव के पास
फूटपाथ पर ही गमछा ओढ़े
और पेट में अपने घुटने साटाये सोया है
मुझे क्यों नहीं
बसंत की ठंडी बयार की रूमानियत
हसीं वादियों की खूबसूरती
फूलों पर मंडराते, भ्रमरों की गूँज
और आम के बगीचों में कोयल की
कूक सुनायी देती है
क्यों मुझे और मेरी कलम की
काली स्याही को...
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखाई देता है?
अब स्याह सच तो बहुत है
कितनों को गिनाऊ मैं
अगर काली स्याही से लिखता ही गया
तो एक दिन खुद को ही भूल जाऊंगा
मुझे अपने में आने दो
और खुद से ही सवाल करने दो
कि क्यों मुझे और मेरी कलम को
सिर्फ और सिर्फ स्याह सच दिखता है ।
logo ko mitha jhooth sunne ki adat ho gaye hai...khai usse mujhe kya...maine apni feelings kavita ke roop me kalambadh ki hai...ummid hai apko pasand ayegi...
ReplyDeleteyaar teri koshish aachi lagi kalam.... chalu rakh
ReplyDeletevery nice... jo aapne likha wo jivan ki sachhai hai aur wo yahin khatam nhi hoti.. sach ki koi seema nhi hai.
ReplyDeletevery nice......!!
ReplyDeletewelcome......!!
Jo samvedan sheel hote wahee ye sab soch sakte hain!
ReplyDeleteJo bhee sach hai,likhte chalo...ham aapke saath hain...
ReplyDeleteइस शहर से आप परेशान हैं या शहर के लोगों से
ReplyDeleteफिरोज अख्तर
MY blog : Mixingballastnews.blogspot.com
कुछ और नया लिखिए. रूक क्यों गये.
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