Monday, December 8, 2014

सुबह...

नीले आसमां तले
हरी लिबास में
आई है गुलाबी सुबह

सौम्य
मुस्कुराती हुई
ओस के साथ
फूलों को खिलाने
भंवरों को जगाने के लिए

पंछी भी कर रहे हैं स्वागत
अपनी सुबह का
चहचहाहट के साथ

कह रहे हैं
आओ सुबह
तुम्हारा स्वागत है
हमेशा की तरह
आज भी.

Friday, September 19, 2014

मेरी कहानी

ये मेरी कहानी है
इसे मैं ही लिखूंगा

तुम्हें जो लिखना था
तुमने लिख दिया

अब मेरी बारी है
अपनी मंजिल तय करने की

जितना देना था तुमने दे दिया
मालूम है तुम और भी दोगे

लेकिन मुझे जो चाहिए
वो नसीब नहीं हुआ

ये मेरी कहानी है
इसे मैं ही लिखूंगा

Saturday, September 6, 2014

ऐसा क्यों ?

साईं ने सोचा ना था ऐसा दिन आएगा
चढ़ावे की चाहत में कोई उनका ‘गला दबाएगा’

धर्मसंसद करके करेगा विधाता की बात 
पाखंडपूर्ण तरीके से लोगों को भरमाएगा

धर्म का झंडा उठाकर करेगा अधर्म की बात
धर्मांध होना लोगों को सिखाएगा 
साईं ने सोचा ना था ऐसा दिन आएगा

Saturday, May 17, 2014

आसमां के पार



चलो चलें
चलना ही नियति है
जीवन पर्यंत

चलो चलें
जहां मन को मिले शांति
और तन हो जाए तृप्त

चलो चलें
आत्मा से परे
परब्रह्मांड के पार
नहीं है वहां कोई शापित

चलो चलें
जहां नहीं विचरते मनुष्य
शायद रहते हैं देवता

चलो चलें
इस जंगल से दूर
व्योम की गहराईयों में
जहां मिले हवा की शीतलता

चलो चलें
गिरिराज की कंदराओं में
होने निर्विकार
तन से विरक्त
और मन से आशक्त

  

Monday, April 21, 2014

मेरा मन



ये मन भी बड़ा अजीब है
कभी नमकीन, कभी मीठी चीज है

कभी सूरज सा तेज, कभी चांद सा शीतल
आंसमा के आंचल में हवा के बीच है

थोड़ी ऊंचाई, थोड़ी गहराई
कभी हिमालय, कभी समुंदर के बीच है

तारों के बारात में
मछलियों के झुंड में
किस्से-कहानी, ख्यालों के बीच है

प्रकृति की कृति, बागों के फूलों में
भ्रमर राग के बीच है

ये मन भी बड़ा अजीब है
दीपक-पतंगे के प्रेम के बीच है

Thursday, April 10, 2014

पतंग...



पतंग को देखकर
याद आता है बचपन
चरखी, धागा और
मांझे की वो बात
कभी आंगन, कभी मैदान
मुंडेर और छतों पर
उड़ाते थे लाल,पीली,नीली पतंग
दोस्तों के साथ  
दांव-पेंच, जीत-हार
आसमान में लड़ती थी पतंगें
कभी जीतने की खुशी
कभी हार का गम
याद आता है वो बचपन
बचपन जो बीत गया
फिर नहीं लौटेगा
आज भी याद आता है